हल्द्वानी, नैनीताल जिले का एक प्रमुख नगर होने के साथ साथ कुमाऊँ के प्रवेश द्वारा के रूप में भी जाना जाता है। और टनकपुर नगर चंपावत जिले का नेपाल सीमा में बसा एक प्राचीन भारतीय नगर है। इस यात्रा संस्मरण और विडियो में इन्हीं दो स्थानों के बीच सड़क यात्रा का विवरण।
Poppcorn Trip के इस सफ़र के लिए उत्तराखंड में कुमाऊ में हल्द्वानी से सितारगंज/ खटीमा सहित विभिन्न पड़ावों से होकर चम्पावत, लोहाघाट, पिथोरागढ़ जनपद के भ्रमण का कार्यक्रम बनाकर, हमने अपनी यात्रा आरम्भ की।
हल्द्वानी से सितारगंज के लिए Roadways स्टेशन से आगे होते हुए गौला नदी के पुल को पार कर हल्द्वानी गौलापार क्षेत्र में पहूचे, यहाँ से हल्द्वानी का व्यस्त क्षेत्र पीछे छूटता जाता है, इसी मार्ग मे हमें दिखा – अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स, हल्द्वानी का स्टेडियम।
कुछ और आगे जाने पर हम पँहुचे नवाड़ खेड़ा तिराहे पर जहां से एक रोड हल्द्वानी, जहां से हम आए थे – दूसरी काठगोदाम और और तीसरी रोड से सितारगंज की ओर जा सकते है।
यहाँ से आगे दिखती है खुली सड़के, प्राकर्तिक वातावरण, हरियाली, कहीं किनारे के खेतों मे हरी – भरी लहलहाती फसलें और काम करते कृषक। मुख्य सड़क में लगे बोर्ड – बीच – बीच में आवश्यक जानकारी देकर अपनी भूमिका निभाते।
रोड के किनारे दिखते – कुछ फार्म और दूर – दूर बने घर, किसी पेंटर को उसके अगले मास्टरपीस के लिए प्रेरणा देते।
आगे बढ़ते हुए, मार्ग से दिखने वाले वाले छोटे -छोटे गाँव, कहीं सड़क के किनारे मंदिर, कहीं फलों या फूलों के विविध रंग, कहीं आपस मे संवाद करते पशु और ग्रामीण जीवन। सड़क पर सरपट दौड़ते वाहन दोनों और वनों से घिरी सड़क।
आगे चलते हुए हम पँहुचे चोरगलिया, जिसे नन्धौर वन्य अभयारण्य नाम से भी जाना जाता है। जहां वन विभाग से अनुमति लेकर wildlife सफारी की जा सकती है।
कुछ स्थानीय जानकार कहते है कि – चोरगलिया का सही नाम चार गलियाँ था, जो बिगड़ कर चोरगलिया हो गया। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि कभी इस सुरम्य घने जंगलों वाले मार्ग में चोर डाकुओं की बहुतायत थी, इसलिए इस क्षेत्र का नाम चोरगलिया पड़ा।
यहाँ से आगे सितारगंज रोड मे आगे बड़े, जो यहाँ से 23 किलोमीटर दूर है। सितारगंज रोड में ही सिडकुल का इंडस्ट्रियल एरिया मिलता है।
संगीत प्रेमियों को झंकार देने वाले वाद्य यंत्र सितार से शुरू होने वाले उधम सिंह जनपद का प्रमुख स्थान सितारगंज समुद्र तल से 298 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
सितारगंज की मुख्य बाज़ार में जाना हो तो मुख्य चौराहे से दाई और जाकर बाज़ार में पंहुचा जा सकता है – यहाँ सभी तरह की दुकाने, शो रूम मिल जाते है. बाज़ार का केंद्र है पीपल चौराहा – बाज़ार का सबसे पुराना इलाका – इसी के इर्द गिर्द बाज़ार का विस्तार हुआ। बाज़ार की रोड से मुख्य हाई वे की और वापस आते कई सरकारी कार्यालय. स्कूल दिखाई देते है। कुछ देर बाज़ार में घुमकर वापस हम मुख्य हाई वे में पंहुचे अपने अपने सफ़र को जारी रखने के लिए।
सितारगंज से खटीमा रोड में हमें एक तिराहा दिखा, जहां से बायीं ओर को जाता मार्ग नानकमतता को और दाहिनी ओर को जाता मार्ग खटीमा के लिए है। गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब की दूरी 1.5 किलोमीटर है। नानकमत्ता स्थित गुरुद्वारा पर हम पूर्व में विडियो बना चुकें हैं, जो आप youtube में “Nanakmatta PopcornTrip” लिख के देख सकते हैं।
नानकमत्ता से आगे मिलती है – प्रतापपुर चौकी, और यहाँ से कुछ आगे ही स्थित है झनकट।
अपनी यात्रा मे आगे बढ्ने के लिए दायी ओर मुख्य हाईवे पर बने रहे। सितारगंज से 11 किलोमीटर के बाद, एक सुंदर स्थान मिलता है – झनकट। इस स्थान की एक विशेषता यह है कि – जहां समान्यतः किसी भी शहर में लोग हाई वे से बाइपास होकर अगले स्थान के लिए निकल जाते है – वहीँ झनकट की मुख्य बाज़ार हाइवे के दोनों और बसी है – मुख्य हाइवे और जो all weather रोड के रूप में भी विकसित हो रही के किनारे बाज़ार होने कारण लोगों को बाजार में चौड़ी सड़कें और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ मिल जाते हैं। इसलिए इस छोटे से बाज़ार से गुजरने का अनुभव अनूठा है।
झनकट में हाइवे के किनारे – यहाँ के फास्ट फूड के कुछ स्टॉल। और सड़क के दोनों और स्थित लगभग सभी तरह की दुकाने है, जहां से स्थानीय लोग ख़रीददारी करते हैं.
यहाँ खेती के लिए उपजाऊ जमीन का महत्व इस बात से लगा सकते है कि – इस छोटे से स्थान में 8 राइस मिल है।
झनकट के बाद खटीमा/ टनकपुर मार्ग में मिला इस रूट मे पहला टोल गेट, जहां से FastTAg द्वारा टोल शुल्क दे कर हम आगे बड़े। इस मार्ग मे सड़क मे अच्छी गति से वाहन चलाया जा सकता है। झनकट से 20 किलोमीटर की दूरी पर है – खटीमा। खटीमा, उधम सिंह नगर का एक प्रमुख नगर।
खटीमा उत्तराखंड निर्माण की मांग करते हुए 1994 में शहीद हुए आंदोलनकारियों की भूमि के रूप मे भी जाना जाता है। यहाँ की बाज़ार मे सीमावर्ती राज्य नेपाल के भी लोग खरीददारी करने आते है।
खटीमा क्षेत्र में पर्यटको को आकर्षित और पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने उत्तराखंड के पहले मगरमच्छों के पार्क का लोकार्पण किया। यहाँ 150 से अधिक क्रोकोडाइल हैं। एक दिसम्बर 2021 से यहाँ crocodile पार्क आरंभ हुआ। यहाँ आगुन्तुक जान सकेंगे कि मगरमच्छ कैसे रहते हैं, कैसे तैरते हैं, कैसे खाते हैं, कैसे सोते हैं, कैसे अपने भोजन के लिए शिकार करते हैं।
खटीमा की सीमा से बाहर आते हुए हुए वनखंडी महादेव मंदिर परिसर में स्थित है – 116 फीट ऊंची भगवान शिव की मूर्ति, संभवतः यह उत्तराखंड की सबसे ऊंची मूर्ति है।
खटीमा से 15 किलोमीटर की दूरी पर है बनबसा। बनबसा अपनी प्राकर्तिक सुन्दरता लिए जाना जाता है। प्रसिद्ध शारदा नहर का उद्गम भी बनबसा से ही हुआ है। बनबसा का मुख्य आकर्षण केन्द्र अंग्रेजों के समय बना बनबसा पुल व बनबसा पुल पर स्थित पार्क है।
बनबसा से हम चंपावत जनपद में है। यहाँ से नेपाल के लिए भी सड़क मार्ग से जा सकते है। कुछ समय पहले हम बनबसा से ही महेन्द्रनगर जिसे अब भीमदत्त कहते है से नेपाल गए थे।
अपने वाहन द्वारा नेपाल में प्रवेश की जानकारियों सहित नेपाल में महेंद्र नगर से काठमांडू और पोखरा की ट्रेवल गाइड पूर्व में पॉपकॉर्न ट्रिप में बना चुके हैं, जिसे आप PopcornTrip youtube channel में देख सकते हैं।
बनबसा से आगे बढ़ते हुए आता है टनकपुर। बनबसा से टनकपुर की दुरी 10 किलोमीटर है. टनकपुर, चंपावत और पिथौरागढ़ का प्रवेशद्वार है। शारदा नदी के किनारे बसा टनकपुर – धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक महत्व के साथ सौन्दर्य प्राकृतिक के लिए उत्तराखंड के महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह चंपावत जनपद अंतिम रेलवे स्टेशन है। पहाड़ी स्थानों को लौटते लोगों और पर्यटक के लिए यहाँ कई होटेल्स और गेस्ट हाउस है।
नेपाल के साथ देश के विभिन्न स्थानों के लिए टनकपुर से रोडवेज़ की बस सेवाएँ है। यहाँ की बाज़ार मे सभी तरह की दुकाने है। जिनमे स्थानीय लोगो की जरूरत का समान मिल जाता है।
टनकपुर बस स्टेशन से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर से एक सड़क पूर्णागिरी मंदिर की ओर जाती है। पूर्णागिरी मंदिर यात्रा पर भी पूर्व मे पॉप्कॉर्न ट्रिप चैनल मे video बना चुके है, जिसे youtube में पॉपकॉर्न ट्रिप पूर्णागिरी टाइप कर सर्च किया जा सकता है।
इसी तिराहे के पास टनकपुर मे नन्धौर वन्य अभयारण्य का ककराली गेट है। इसका एक गेट हमने इसी video मे चोरगलिया मे देखा था।
मैदानी सड़क में सफ़र यहीं तक इसके आगे की यात्रा पहाड़ी घुमावदार मोड़ों से हुए होते आगे बढेगी, यात्रा के अगले भाग में यहाँ से चम्पावत की यात्रा रास्ते के खुबसूरत लैंडस्केप के साथ देखेंगे – श्यामलाताल को, जहाँ एक खुबसूरत ताल है, और जहाँ कभी स्वामी विवेकानंद भी आये थे।
आशा है आपको ये लेख पसंद आया होगा। विडियो देखें PopcornTrip चैनल में।