उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता, वन संपदा, कला-संस्कृति, जलवायु, वन्य जीवन, गंगा, अलकनंदा, सरयू जैसी नदियों के उद्गम स्थल और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इसी कारण इसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है।
देवीधुरा: देवी का वास देवीधुरा, दिल्ली से 383 किमी, चम्पावत से 55 किमी, टनकपुर से 127 किमी, नैनीताल से 96 किमी, अल्मोड़ा से 79 किमी और हल्द्वानी से 108 किमी की दूरी पर स्थित है। यह समुद्र तल से 6600 फीट की ऊँचाई पर बसा हुआ है। यहाँ का मौसम अन्य पहाड़ी इलाकों की तरह ही है, सर्दियों में बर्फबारी और गर्मियों में सुहावना मौसम।
माँ बाराही का मंदिर: यहाँ माँ बाराही का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के पास हनुमान मंदिर भी है। मंदिर के सामने का मैदान ‘बग्वाल’ नामक पत्थर युद्ध के लिए प्रसिद्ध है।
पौराणिक पत्थर युद्ध: बग्वाल श्रावण पूर्णिमा के दिन, जहाँ पूरे भारत में रक्षाबंधन मनाया जाता है, देवीधुरा में बहनें अपने भाइयों को ‘बग्वाल’ नामक पत्थर युद्ध के लिए तैयार करती हैं। यह कुमाऊँ की संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। हजारों श्रद्धालु इस अनूठे युद्ध को देखने आते हैं।
बग्वाल का इतिहास: देवीधुरा मेले की ऐतिहासिकता को लेकर मतभेद हैं। कुछ इतिहासकार इसे 8वीं-9वीं शताब्दी से मानते हैं। यहाँ के लोगों के अनुसार, पौराणिक काल में चार खामों (गहरवाल, चम्याल, वालिक और लमगड़िया) देवी बाराही को नर बलि देते थे। एक बार चम्याल खाम में एक वृद्धा और उसके पौत्र की बारी थी। वृद्धा ने देवी से प्रार्थना की और देवी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर पत्थर युद्ध का आयोजन करने का निर्देश दिया।
यह युद्ध तब तक जारी रहता है जब तक खेल के दौरान सामूहिक रूप से एक व्यक्ति के शरीर के रक्त के जितना रक्त न बह जाए।
मान्यताएं और परंपराएं:
माना जाता है कि बग्वाल खेलने वाला व्यक्ति यदि पूर्णरूप से शुद्ध व पवित्रता रखता है तो उसे पत्थरों की चोट नहीं लगती है। पुजारी जब यह मान लेता है कि पर्याप्त रक्त बह गया है, तो वह केताँबें के छत्र और चँबर के साथ मैदान में आकर शंख बजाकर बग्वाल संपन्न होने की घोषणा करता है।
समापन पर चारों खामों के लोग आपस में गले मिलते हैं।
देवीधुरा मेला: देवीधुरा मेला 15 दिनों तक चलता है। इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
देवीधुरा कैसे पहुंचें:
हवाई मार्ग: देवीधुरा का निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर (230 किमी) है।
रेल मार्ग: काठगोदाम (265 किमी) निकटतम रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग: देवीधुरा सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
आपको देवीधुरा मेले में क्या अनुभव हो सकता है, इसकी कल्पना करने में आपकी सहायता के लिए, यहाँ कुछ विवरण दिए गए हैं:
उत्सव का माहौल: रक्षाबंधन के दिन मेले की शुरुआत धूमधाम से होती है। पूरा माहौल उत्सवमय हो जाता है। पारंपरिक वेशभूषाधारी लोग जुलूस निकालते हैं। दुकानें सज जाती हैं, जहाँ आपको स्थानीय हस्तशिल्प, खाने का सामान और धार्मिक सामग्री मिल जाएगी।
बग्वाल की तैयारी: मेले के दौरान, आप बग्वाल की तैयारियों को देख सकते हैं। प्रतिभागी युद्ध के लिए रणनीति बनाते हैं और विशेष प्रकार के ढालों का निर्माण करते हैं। महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और अपने भाइयों को आशीर्वाद देती हैं।
रोमांचकारी युद्ध: बग्वाल के दिन, तनाव और उत्सुकता चरम पर होती है। युद्ध शुरू होते ही, हवा में पत्थरों की वर्षा होने लगती है। ढोल की थाप और युद्धध्वनियाँ वातावरण को ऊर्जा से भर देती हैं। हालाँकि, आजकल सुरक्षा कारणों से युद्ध में मुख्य रूप से फलों और फूलों का उपयोग किया जाता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम: मेले के दौरान, शाम को लोकनृत्य और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। ये कार्यक्रम आपको उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति से रूबरू कराते हैं। आप कुमाऊँनी व्यंजनों का स्वाद भी ले सकते हैं।
धार्मिक महत्व: मेले का धार्मिक महत्व भी है। श्रद्धालु माँ बाराही के मंदिर में दर्शन करते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर का वातावरण शांत और आस्थामय होता है।
पहाड़ी सौंदर्य का आनंद:
देवीधुरा की प्राकृतिक सुंदरता अपने आप में आकर्षक है। मेले के दौरान आप आसपास के सुंदर स्थानों की सैर कर सकते हैं और पहाड़ों की मनमोहक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
याद रखने योग्य बातें:
- देवीधुरा में ठहरने के लिए सीमित विकल्प हैं। इसलिए, मेले के दौरान पहले से ही बुकिंग करा लेना उचित रहता है।
- पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण, गर्म कपड़े साथ लाने की सलाह दी जाती है।
- मेले में भीड़भाड़ रहती है, इसलिए अपने सामान का ध्यान रखें।