ग्वालदम और प्रकर्ति प्रेमियों के लिए एक आदर्श ट्रेक – बधानगढ़ी
इस लेख मे हैं – उत्तराखंड के एक छोटे से हिल स्टेशन ग्वालदम और ग्वालदम से बधानगढ़ी मंदिर का ट्रेक की जानकारी, जानेंगे यहाँ कैसे जाते हैं।
बधानगढ़ी में माँ दक्षिनेश्वर काली का मंदिर हैं, और यहाँ से हिमालय की वृहद श्रंखलाए, घाटी के महमोहक नज़ारों के साथ सुदूर पहाड़ियों मे फैले गाँव के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं। प्रकृति की अद्भुत रूप को अनुभव करने के लिए और पहाड़ की ऊंचाई मे माँ के दर्शन कर अपनी श्रदा प्रकट करने के लिए लोग बधान गढ़ी आते हैं।
कौसानी की ओर से आते हुए, ग्वाल्दम में प्रवेश करते ही दाहिनी और हिमालय और साथ में घाटियां दिखने लगती हैं। ग्वालदम है, किसी भी छोटे पहाड़ी कस्बे की तरह, टॅक्सी स्टैंड मे सड़क के किनारे टॅक्सी, आस पास मुसाफिरों के लिए भोजनालय, पहाड़ के घुमावदार सफर से यात्रियों को राहत देती ग्वालदम की ताजी हवाएँ और प्रफुल्लित करने वाला वातावरण ।
कुमाऊँ और गढ़वाल के मध्य, चमोली जिले मे स्थित यह स्थान – ग्वालदम – कुमाऊँ और गढ़वाल जाने वाले यात्रियों के साथ साथ सुप्रसिद्ध नन्दा राजजात यात्रा और रूपकुंड ट्रेक के रूट मे भी महत्वपूर्ण पड़ाव हैं।
सामान्य सी दिखने वाली यह जगह जानी जाती हैं – यहाँ से दिखने वाली हिमालय श्रृंखलाओं के लिए, मन्त्र मुग्ध कर देने वाले प्रकृति के नजारों के लिए, यहाँ के ठन्डे मौसम के लिए, ग्वालदम ट्रेकिंग प्रेमियों के साथ उन लोगों के लिए भी अच्छा पर्वतीय स्थल हैं – जो शांत जगहों में प्रकृति के साथ अपनी छुट्टियाँ बिताना चाहते हैं।
बधानगढ़ी मंदिर पहाड़ी के शिखर मे हैं, जहां पहुचने के लिए ग्वालदम से करीब 8-9 किलोमीटर – ताल नामक स्थान तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, उसके बाद 2-3 किलोमीटर का रास्ता ट्रेक कर तय किया जाता हैं।
ग्वालदम से कर्णप्रयाग रोड मे 4-5 किलोमीटर आगे जाकर एक अलग छोटी रोड बधानगढ़ी के लिए रोड जाती हैं। हिमालय की शृंखलाए ग्वालदम की सड़कों से गुजरते हुए भी बेहद आकर्षक दिखाई देती हैं, ऑल वैदर रोड का काम इस रोड मे भी चल रहा हैं, जिससे रोड कई जगह बेहद खराब हैं,
ग्वालदम से थराली तक रोड लैंड स्लाइड के कारण हर बरसात मे खराब हो जाती हैं, उम्मीद हैं अगले कुछ सालों मे all वैदर रोड का काम पूरा होने के बाद – यहाँ चौड़ी और अच्छी सकड़ों मे सफर करने का अनुभव शानदार होगा।
मुख्य हाइवे से बधान गढ़ी जाने वाली रोड कुछ संकरी हैं, लेकिन इसमे रूट मे ज्यादा ट्रेफिक नहीं होता, मई और जून माह मे ग्वालदम में उत्तराखंड के बाकी जगहों की तरह पर्यटक सीज़न होने के कारण थोड़ा ट्रेफिक मिल सकता हैं।
बधान गढ़ी तक ले जाने वाली रोड मंदिर के पहाड़ी की तलहटी में ताल नाम की जगह तक जाती हैं, वहाँ से गाड़ी पार्क कर बधानगढ़ी की 2-3 किलोमीटर की चड़ाई यहाँ से शुरू होती हैं।
तलहटी मे 2-3 छोटी दुकाने हैं। अपने साथ चढाई तय करते अपने साथ समय पानी रख लें, ऊपर मंदिर में पानी की थोड़ा समस्या हैं, बधान गढ़ी मंदिर के पुजारी मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित जल जल स्रोत से पानी लेकर आते हैं।
बधानगढ़ी मंदिर ट्रेक पर्यटकों के लिए less known destination हैं, इसलिए ज़्यादातर उत्तराखंड के समीपवर्ती जिलों के लोग यहाँ आते हैं, थोड़ी दूरी तक कम चड़ाई हैं, उसके बाद रास्ते एकदम खड़ी चढ़ाई लिए हैं, और ऐसे मे अपनी चलने की अभ्यास क्षमता के अनुसार ठहरते हुए रास्ता तय करते हुए हम आगे बढ़े।
रास्ते से दूर दिखने वाले हिमालय की चोटियों जैसे जैसे ऊपर जाते हैं, और विशाल दिखने लगती हैं,, रास्ते मे कुछ थोड़े से लोग – आते जाते दिखे, इस जगह आबादी नहीं हैं।
वैसे हमारे व्यस्त शहरों को देख, कोई भी आसानी से समझ लेते हैं, कि – भारत आबादी के दुनिया के शीर्ष देशों मे हैं। शहरों से दूर इस ट्रेक्किग रूट पर प्रकृति के अतिरिक्त जब कोई दूर तक कोई नहीं दिखता तब लगता हैं, घनी आबादी का कारण देश मे – कम जमीन का होना नहीं, बल्कि हमने खुद को शहरों मे भर लिया हैं। और बड़े सारे ग्रामीण भूभाग में हम नहीं रहना चाहते – क्योकि वहाँ बड़े बड़े मॉल, स्कूल, मार्केट, हॉस्पिटल, रोशनी से नहाई शामें, उपभोग और उपभोक्तवादी जीवन को आसान करने वाले साधनों का आभाव हैं। शहरों के विपरीत छोटे क़सबों की बाज़ार, और सड़के शाम ढलते ही वीरान हो जाती हैं।
यहाँ से दिखते हैं मीलों तक फैली प्रकृति के खूबसूरत landscape। शहरों मे लगे एयर कंडीशनरसग, कमरे की = गर्म हवा को ठंडा कर दें, लेकिन पेड़- पौधों कि तरह शुद्ध ऑक्सिजन तो नहीं उत्पन्न कर सकते।
2 किलोमीटर का ट्रेक यो तो बहुत ज्यादा नहीं समझा जाता, लेकिन रास्ते की ज़्यादातर चड़ाई तीव्र हैं, जिससे ऊपर चढ़ते हुए सांस फूलती हैं, चलने के लिए सीमेंट और concrete की छोटी – 2 सीढ़िया बनी हैं, जो बरसात मे चलने के लिए तो ठीक हैं, लेकिन हार्ड सर्फ़ेस होने के कारण, पैर ज्यादा थकते हैं, चलते हुए, ग्रामीण अक्सर इन रास्ते के समांनांन्तर छोटे – 2 रास्ता बना लेते हैं, घास और मिट्टी के ऊपर, जो सीमेंट के रस्तों पर चलने की अपेक्षा पैरों को थोड़ा नर्म अहसास देते हैं।
रास्ते मे ठहरते हुए हमने, हिमालय और प्रकृति का दृष्यवलोकन करते हुए – मंदिर पहुचने मे करीब ढेड़ घंटे का लिया।
मंदिर के गेट की दीवार ने संकेत दिया कि – हमारी चढ़ाई खत्म होने के हैं, और मंजिल के बेहद पास हैं।
वैसे चड़ाई या ट्रेक चढ़ने के परिश्रम से मिली थकान earn करने के बाद के आराम का आनंद लेना, मनुष्य के सबसे अच्छे एहसासों मे से एक हैं।
यहाँ पहुच कर लगता हैं, किसी और ही दुनिया मे आ गए, एकदम से पूरे दृश्य बदल जाते हैं, दूर तक खुली घाटियां दूर पहाड़ियों मे बसे गाँव और कस्बे, और सबसे पीछे ऊंची हिमालय की वृहद श्रंखलाए, यहाँ से नंदादेवी, पंचचुली, त्रिशूल सहित हिमालय की बेहद आकर्षक छवि नज़र आती हैं।
माँ कालि के साथ भगवान शिव को समर्पित हैं, मन्दिर का निर्माण 8वी और 12वी शताब्दी के मध्य मे कत्युरी वंश के राजाओं ने किया।
मंदिर के निकट कुछ धर्मशालाए हैं, पानी की व्यवस्था कुछ दूरी से करनी होती हैं, यहाँ रात्री विश्राम करना चाहें, तो धर्मशाला मे जगह की उपलब्धता होने पर रहा जा सकता हैं, सोने के लिए जमीन पर कुछ गद्दे बिछाकर, कुछ ओड़ने के कंबल भी यहाँ मिल जाते हैं, बिस्तर और बर्तनों की व्यवस्था यहाँ आने वाले श्रद्धालु समय समय पर करते रहते हैं।
भोजन की व्यवस्था के लिए लड़की के चूल्हे पर आग जलाकर की जा सकती हैं, भोजन सामाग्री स्वयं लानी होगी।
हम अपने साथ दोपहर का भोजन पैक कराकर लाए थे, 2260 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर हिमालय के सामने, प्रकृति की ठंडी हवाओं के मध्य, – भोजन करने का आनंद तो स्वर्गिक सुख से कुछ कम भी नहीं।
बधान गढ़ी मंदिर से दायी ओर थोड़ा सा ऊपर जाकर हिमलाय और भी शानदार नज़र आता हैं, यहाँ से लगता हैं जैसे हिमालय ठीक सामने हैं। बधान गढ़ी मे जैसी जगह सदियों से वैसी हैं, जैसी तब थी – जब हमने पत्थर घिस कर आग जलाना सीखा होगा, ऐसी जगहों मे शांति के साथ ताजी हवाएँ अपने फेफड़ों मे भर, कुछ घंटे यहाँ की अद्भुत वातावरण मे बिता हम उतार गए ग्वालदम को।
ग्वालदम से सूर्यास्त मे सूर्य की रश्मियां हिमालस की चोटियों पर, कुछ तस्वीरे और भविष्य की यादों को जमा कर हमारा आज का सफर यही खत्म।
यहाँ से जुड़ा रोचक विडियो देखने के लिए नीचे लिंक उपलब्ध है।